सेलुद 29 मार्च – बाजार चौक सेलुद निवासी बलराम वर्मा व उनके परिवार द्वारा अपने मां श्रीमती लीलाबाई वर्मा के बरसी श्राद्ध में श्रीमद भागवत कथा का आयोजन के प्रथम दिवस कथा के कथावाचक बालोद गुंडरदेही के पंडित श्री भुपेन्द्र पांडेय महराज जी ने कलश यात्रा के बाद गोकर्ण कथा सुनाते हुए कहा कि है। प्राचीन समय की बात है। दक्षिण भारत की तुंगभद्रा नदी के तट पर एक नगर में आत्मदेव नामक एक व्यक्ति रहता था, जो सभी वेदों में पारंगत था। उसकी पत्नी का नाम धुन्धुली था। धुन्धुली बहुत ही सुन्दर लेकिन स्वभाव से क्रूर और झगडालू थी। यह सब सोचकर उसने बड़े दुखी मन से अपने प्राण त्यागने के लिए वह वन चला गया। आत्मदेव ने कहा, ऋषिवर मैं संतान के लिए इतना दुखी हो गया हूं कि मुझे अब अपना जीवन निष्फल लगता है। वह संत उसकी बात सुनकर उसके ललाट की रेखाओं को देखता है। रेखाओं को देखकर वह कहता है कि तुम्हारे भाग्य में कोई संतान योग नहीं है। तुम प्राण मत त्यागो तुम यह फल लो और इसे अपनी पत्नी को खिला देना, इससे उसके एक पुत्र होगा। एक दिन उसकी बहन उसके घर आती है जिसे वह सारा किस्सा सुनाती है। बहन उससे कहती है कि- मेरे पेट में बच्चा है, प्रसव होने पर वह बालक मैं तुम्हे दे दूंगी, तब तक तुम गर्भावती के समान घर में रहो। मैं कह दूंगी, मेरा बच्चा मर गया और तू ये फल गाय को खिला दे। आत्मदेव की पत्नी अपनी बहन की बात मानकर ऐसा ही करती है। उस फल को वह गाय को खिला देती है।एक झुठ छुपाने के लिए मनुष्य को दर्जनों झुठ बोलना पड़ता है- समय व्यतीत होने पर उसकी बहन ने बच्चा लाकर धुन्धुली को दे दिया। पुत्र हुआ है यह सुनकर आत्मदेव को बड़ा आनंद हुआ। धुन्धुली ने अपने बच्चे का नाम धुंधकारी रखा। गाय के पास एक बच्चा है जो कि मनुष्याकार है, लेकिन बस उसके कान ही गाय के समान थे। उसे देखकर वह आश्चर्य में पड़ जाता है। हालांकि उसे बड़ा आनंद भी होता है। वह उस बच्चे को उठाकर घर में ले जाता है। उसका नाम वह गोकर्ण रखता है। एक धुंधकारी और दूसरा गोकर्ण। गोकर्ण बड़ा होकर विद्वान पंडित और ज्ञानी निकलता है ।एक दिन वह पिता को मार मार कर घर से बहार निकाल देता है। उसकी पत्नी धुन्धली को धुंधकारी सताने लगता है तो वह कुएं में कुंदकर आत्महत्या कर लेती है।
तब धुंधकारी पांच वेश्याओं के साथ रहने लगता है। जब वह गला दबाने से भी नहीं मरता है तो वे सभी मिलकर उसे दहकते अंगारों में डाल देती है। अपने कुकर्मो के कारण एक प्रेत बन जाता है। एक दिन उसका भाई गोकर्ण उसके गांव में कथा करते हुए आते हैं। गोकर्ण सबसे नजर बचाते हुए अपने पुश्तेनी मकान में सोने चले जाते हैं। अपने ही घर में अपने भाई को सोया हुआ देखकर धुंधकारी खुश हो जाता है और आवाज लगाता है।गोकर्ण यह आवाज सुनकर पूछता है कि तुम कौन हो। धुंधकारी कहता है, मैं तुम्हारा भाई हूं मैंने तुम्हारे लिए विधिपूर्वक गयाजी में श्राद्ध किया फिर भी तुम प्रेतयोनी से मुक्त कैसे नहीं हुए ।अपने माता-पिता को कष्ट देने वाला, शराब पीने वाला, वेश्यागामी आदि पुरुष प्रेतयोनी प्राप्त कर अनंतकाल तक भटकते रहते हैं। अब न हो गोकर्ण की तरह कथा सुनाने वाले हैं और न सुनने वाले। धुंधकारी को उसके पापों की सजा तो मिली ही साथ ही उसने प्रेतयोनी में रहकर भी सजा भुगती। बाद में जब उसे पछतावा हुआ तो भागवत कथा सुनकर मन निर्मल हो गया। निर्मल मन होने से उसके सारे संताप जाते रहे।
इस कथा में प्रमुख रुप से बलराम वर्मा ,इन्द्रजीत वर्मा, ईश्वरीय वर्मा, श्यामु वर्मा, तोरण वर्मा ,संतोष वर्मा, ईश्वर वर्मा ,कल्याणी वर्मा, भुनेश्वरी वर्मा, रानू वर्मा ,पुजा वर्मा ,छोटी वर्मा ,पुष्पा वर्मा ,उषा वर्मा, रुखमणी वर्मा, अन्नपुर्णा वर्मा, ममता वर्मा, किरण वर्मा,रामेश्वरी वर्मा, वंदना वर्मा, लता वर्मा, शारदा वर्मा, नीमा साहू, दिपिका साहू, लछवंतीन साहू, रामेश्वरी बघेल, दुलारी साहू ,परमिला साहू, मंजु ठाकुर ,भुनेश्वरी साहू, मंजु साहू, पेमिन, ललिता ,काजल ,इःद्राणी ,भागबती ठाकुर, सरोज मीना सहित ग्रामवासी शामिल हुए ।