फ्लैग- सांसों की कीमत वतन की सेवा से आंकते हैं राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त सेवानिवृत्त शिक्षक साहू

अम्लेश्वर 05 सितंबर : समाज सेवा के साथ शिक्षा के प्रति प्रेम का उदाहरण भी पेश करते हैं परसराम. उन्होंने देहदान की घोषणा कर औपचारिकताएं भी पूरी कर दी है ताकि.

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मरणोपरान्त उनकी देह मेडिकल छात्रों के प्रयोग के काम आ सके । परसराम साहू अनेक सामाजिक संस्थाओं एवं शिक्षा, कला, प्रतिभा अकादमी छत्तीसगढ़ में संरक्षक बनकर मार्गदर्शन दे रहे हैं तथा सम्मानित भी हुए हैं। • परसराम साहू जहां भी शिक्षक रहे, वहां-वहां गांधी जी, शहीद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की प्रतिमा स्थापित कर देशप्रेम का संदेश दिया।

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इंट्रो- जीवन वो नहीं, जो हम सामान्य जीवन जीते हैं. जीवन को है, जो वतन के काम आए, अपनी हर सांस माटी की सेवा में समर्पित करने वाले राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त सेवानिवृत्त शिक्षक परसराम साहू जीते जी किसी किंवदंती बन गए हैं. शासकीय सेवा में रहते उन्होंने शिक्षा, समाजसेवा, पर्यावरण और सामाजिक समरसता के लिए संघर्ष करते रहे. शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2014 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. रिटायरमेंट के बाद भी वे चौबीसों घंटे केवल और केवल देश की सेवा के बारे में सोचते हैं. उनके नेक विचार और उत्तम कार्यों की वजह से न जाने वे कब परसराम की व्यक्तिगत छवि से निकलकर परस से … पारस… बन गए, उन्हें खुद पता नहीं चला. फर्ज और ईमान की जिंदा मिसाल हैं परसराम साहू. माता-पिता ने जो नाम रखा.. पारस…, उसे जी रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के ग्राम कुगदा (कुम्हारी) के रहने वाले 66 वर्षीय परसराम अत्यंत ही सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले व्यक्ति हैं. पूरी दुनिया उनकी सादगी की कायल है. एक साक्षात्कार में उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि, शिक्षा, शिक्षक और छात्र, सभी के मायने बदल गए हैं. शिक्षा में उद्देश्य विलुप्त हो गया है. शिक्षक अपनी भूमिका गुरु की भांति नहीं निभा रहे, शिक्षक केवल वेतनभोगी होकर रह गए हैं. छात्रों में अनुशासन का अभाव है. ऐसे में एक समुन्नत और विकसित राष्ट्र का निर्माण असंभव है. शिक्षक अपनी भूमिका समझें और छात्र अपना कर्तव्य, तभी एक विकसित और बौद्धिक संपन्न राष्ट्र का निर्माण संभव हो पाएगा. परसराम को उनकी शिक्षकीय कला और समर्पण की वजह से श्रवण विकलांग बच्चों को पढ़ाने के लिए स्पेशल टास्क दिया जाता था. उस टास्क को पूरा करने वे जिस शिद्दत के साथ बेहतर परिणाम दिया करते थे. परसराम का परिश्रम जब सफल होता था, तो बाकी शिक्षकों, स्कूलों के लिए रोल मॉडल साबित होता था. वे कहते हैं, कि शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता, शासकीय सेवा से पृथक होना और बात है. लेकिन, यदि सच कहा जाए तो एक शिक्षक अंतिम सांस तक शिक्षक ही होता है. शिक्षक का कार्य अंतिम सांस तक समाज को शिक्षा, ज्ञान और सही मार्गदर्शन देना होता है. आज शिक्षक कहते हैं, कि जमाना बदल गया है, फिर हम क्यों न बदलें? मैं कहता हूं, कि आज भी हमारा राष्ट्र, शिक्षकों की ओर आशाभरी निगाहों से देख रहा है. क्योंकि, गुरु को हमारे देश में ईश्वर से ऊपर का दर्जा प्राप्त है. शिक्षा देना एक पवित्र और पुण्य का कार्य है. शिक्षक के सामने बड़े-बड़े लोग श्रद्धा से सिर झुकाते हैं. किंतु, कालांतर में बहुत कुछ बदल गया. गुरु, गुरु नहीं रहे, तो वहीं छात्र, छात्र नहीं रहे. मेरा अनुरोध है, कि शिक्षक, गुरु की गरिमा को वापस लाएं, अपने कर्मों से, उत्तम विचारों और समाज सेवा से मूल्यों की पुनस्थापना करें. परसराम श्रवण बाधित बच्चों को व्यावसायिक प्रशिक्षण भी देते हैं। वे रायपुर में दिव्यांग बालिकाओं को प्रतिवर्ष 4 जनवरी को लुई ब्रेल दिवस पर उपहार, बुक्स आदि भेंट कर अपने नववर्ष

की शुरुआत करते हैं.

बाक्स-01). पर्यावरण की दिशा में अलग पहचान

पर्यावरण की सोच बचपन से ही थी। प्रकृति मित्र पर्यावरण समिति, कुगदा कुम्हारी एवं छत्तीसगढ़ पर्यावरण समिति अमलेश्वर के साथ जुड़कर विद्यालयों में मित्रों के जन्मदिन, शादी-ब्याह तथा अन्य समारोह में पौधरोपण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं। इन्होंने पर्यावरण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है. अब तक स्कूलों, तालाबों, विभिन्न उद्यानों समेत कई जगहों पर हजारों पौधे लगाए हैं. जो 25 से 35 फिट के वृक्ष बन चुके हैं. पौधे लगाने का क्रम आज भी जारी है. वे कहते हैं, बगैर पेड़-पौधों के जीवन व्यर्थ है. हर आदमी को इस दिशा में सोचना और कुछ करना चाहिए, वन है, तो जीवन है. इसी सोच के साथ सेवानिवृति के बाद ग्राम मगरघटा (अमलेश्वर) में एक छोटे से फार्म हाऊस में लगभग 150 प्रकार के औषधीय एवं विशेष पौधे जैसे- रूद्राक्ष, चंदन, कपूर, नींबू, पूर, नींबू, लौंग, इलाइची, जायफल, नीम, आम, अमरूद, मुनगा, रामकाठ, शहतूत, ब्रम्हकमल, कृष्णकमल, नीलकमल, पारिजात, तुलसी आदि के पौधे लगाए हैं. कुछ पौधे तो पेड़ का रूप ले चुके हैं.

बाक्स-02). पत्थर कलेक्शन का अजीब शौक

पत्थर कलेक्शन का परसराम को अजीब शौक है. उनके संग्रह में तरह-तरह के छोटे-बड़े पत्थरों का खजाना है. साहू कहते हैं, कि वे भारत भ्रमण के दौरान जहां भी जाते हैं, वहां से एक पत्थर ले आते हैं. इसकी कई स्थानों पर प्रदर्शनी भी लगाई जा चुकी है. उन्हें लोग पथरावाला गुरुजी के नाम से भी संबंधित करते हैं. इनके संग्रहालय में कोयले से लेकर हीरा तक विभिन्न प्रकार के 300 पत्थरों का संग्रह है. इसमें यूरेनियम, बाक्साइट, कोरण्डम, निकिल, पन्ना, मूंगा, माणिक, केलसाइड, एमेथिस्ट आदि शामिल हैं।

बाक्स-03).

रेडियो श्रोता दिवस मनाने की शुरुआत

परसराम, छत्तीसगढ़ रेडियो श्रोता संघ, रायपुर के अध्यक्ष हैं. 20 अगस्त 2009 को रेडियो श्रोता दिवस मनाने की शुरुआत इनकी संस्था ने की थी. जिसे आज सम्पूर्ण भारत में स्वीकार कर लिया गया है. हर साल 20 अगस्त को अब अखिल भारतीय स्तर पर सम्मेलन आयोजित कर दिन विशेष मनाया जाता है। अलग-अलग राज्यों में ये दिन विशेष मनाने का सिलसिला क्रमानुसार जारी है. अभी हाल में महाराष्ट्र के बुलढाणा में मनाया गया.

बाक्स-04).

सिनेमा साहित्य संग्रहालय

विश्व रेडियो दिवस (13 फरवरी) के अवसर पर आपने एक और संग्रहालय बनाया है। इसमें सिनेमा 1931 से 1990 तक की सभी फिल्मों की विस्तृत जानकारी है। विश्व सिनेमा का इतिहास, भारतीय सिनेमा के 100 साल, अदाकारों, गायकों, संगीतकारों की जीवनी भी उपलब्ध है। 100 वर्ष पुराना ग्रामोफोन तथा विनाइल रिकार्ड का अद्भुत संग्रह है। सिनेमा के पोस्टर्स, डाक टिकट फोल्डर्स, स्लाईड्स आदि भी उपलब्ध हैं।

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करन साहू रिपोर्टर - पाटन "के गोठ (PKG NEWS) Powerd By "Chhattisgarh 24 News" Group Of multimedia Pvt. Ltd.
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