पाटन 24 सितंबर: हिंदु धर्म के बहुत सारे वेद पुरानो के जानकर थे श्री अजय दास मानिकपुरी जी बहुत ही सरल स्वभाव और हमारे हिंदी छत्तीसगढ़ी हिंदी उर्दू भोजपुरी मराठी बंगाली ओडिया तेलगु और भी भाषा बहुत अच्छे तरह से बोलने और लिखने मे माहिर थे।
सन् 1936 मे खडगपुर वेस्ट बंगाल मे जन्मे श्री अजय उस्ताद के बचपन का नाम जगदीश था बचपन से ही गीत लेखन गायन और वादन मे रुचि थी पिताजी श्री विदेशी दास मानिकपुरी और माता जी का नाम अनुज कुवर था।
संगीत उनको विरासत मे मिली थी पिताजी महाभारत के बहुत अच्छे गायक थे उनके साथ अनेक मंचों पर जुगल बंदी करने का सौभाग्य उनको प्राप्त हुआ।
धीरे धीरे उनको गीत लेखन का भी रुचि बड़ने लगा फिर पुरानो का अध्यन करके जस गीत लिखना चालू किये उस समय सिर्फ अपने लिए ही गीत लिखकर गाते थे
युवावस्था आने पर उन्होंने बाबा श्री कल्लू दास जी को और अपने पिताजी श्री विदेशी जी को अपना गुरु बनाया
अजय उस्ताद जी कमाक्षा मंदीर असम मे मे मौन धारण कर बहुत दिनों तक रहे वही से उनको ” अजय ” नाम मिला सन् 1951 मे उनको देवी सरस्वती का दरसन प्राप्त हुआ था।
हमारे देवी देवताओ के वर्णन को पड़कर उनके जगह स्थानों को खोजने और जानने का उनको बहुत जिज्ञासा थी वह हमेशा सभी देव स्थानो पर जा जा कर पूरी जानकारी हासिल किया करते थे।
सन् 1963 मे वह दुर्ग आये और यह भी चंडी देवी का दरसन पाकर दुर्ग सहर के निकट ग्राम पोटियाकला मे अपना निवास स्थान बनाये
सन 1970 मे पिताजी के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ के गाव गाव मे पंडवानी के माध्यम से महाभारत का गुणगान किये।
सन् 1980 मे जस फाग को एक नया अयाम मिला और श्री अजय उस्ताज जी का रचना पूरे छत्तीसगढ़ के कोने कोने पर चलने लगा।
छत्तीसगढ़ अंचल मे लगभग 300 गावो के लिए गुरुजी गीत लिखते थे छत्तीसगढ़ी मे रामायण और महाभारत लिखने का कीर्तिमान भी श्री अजय उस्ताद जी के नाम है
गुरुजी को अनेक राज्यो मे अलग अलग उपाधि से नवाजा गया था जिसमे ताज वाले बाबा के दरगाह नागपुर मे “ताजी” का उपाधी ग्राम खेरधा छत्तीसगढ़ मे “बघवा” और भी बहुत से उपाधी उनके नाम है
श्री अजय उस्ताद जी सिर्फ लेखन के छेत्र मे ही नही अखाड़ा और करतब बाज़ी मे भी उस्ताद थे
उनके लिखे हुए गीत सदा अमर है जो आज भी बहुत लोकप्रिय है और सदा उनके गीत उनके नाम के अनुसार अजय रहेंगे।
गुरुजी अपने पूरे टीम को अपना परिवार मानते थे और यही परिवार के खातिर उन्होंने भिलाई स्टील प्लांट की नौकरी रेलवे की नौकरी को भी छोड़ कर अपना पुरा जीवन गीत लिखने मे ही गुजार दिये
अपने जीवन काल मे बहुत से कठिनाई का सामना किये 5 बच्चों के पिता बने गुरुवाइन दाई श्रीमती भोजली मानिकपुरी थी।
ये उनका स्वभाव था की मुफलिसी की जीवन जिने के साथ ही वह कभी किसी गीत के पैसे नही लिये जो टीम गीत लिखवा कर कुछ देते उसमे उनका गुजर बसर चलता था
अपने पूरे टीम के परिवार और अपने घर परिवार को रोते हुए हम सबको छोड़कर गुरुजी 2009 को स्वर्ग गमन के साथ सतलोक वासी हुए।
तब से प्रतिवर्ष उनके पूरे टीम के दुवारा उनके याद को यादगार बनाने उनके पूरे टीम मिलकर 20 मार्च को भव्य आयोजन करके गुरुजी का स्मृति दिवस मनाते है
और अभी ग्राम माड़ियापार जिला दुर्ग मे उनके मंदीर और मूर्ति के निर्माण का कार्य प्रगति पर।
संकलन कर्ता मंगल वर्मा भिलाई है। और उक्त जानकारी विजय साहू पाटन ने शेयर की है।