महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज की कल्पना आधुनिक भारत के लिए संजीवनी- शिक्षाविद छन्नूलाल साहू

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महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज की कल्पना आधुनिक भारत के लिए संजीवनी ….
करमचंद गांधी का ग्राम स्वराज, रामराज्य कल्पना से अभिमंत्रित….

(गांधी जयंती पर महात्मा गांधी जी की ग्राम स्वराज की अवधारणा पर शिक्षाविद- छन्नूलाल साहू का विशेष लेख)
भारत राष्ट्र की पुण्य धरा अनेक देवी देवताओं, ऋषि मुनि, महात्माओं के आध्यात्मिक मन कर्म वचनों से सिंचित हैं। इसीलिए महान भारत देश अनंत काल से चिर शाश्वत है। यह भूमि अनेक पुरातन संस्कृति, सभ्यता, मान्यता, धर्म,पंथ,की जननी रही है। सभी धर्म संस्कृतियों ने अपनी मान्यताओं के अनुसार निष्कंटक पुष्पित पल्लवित हुए और उनके लाखों अनुयायी भी संरक्षित है।

हिन्दू,मुस्लिम, सिख, ईसाई,जैन, बौद्ध, पारसी सभी धर्मावलंबियों ने अपनी अपनी नैतिक मूल्यों और मान्यताओं का पालन करते हुए आपसी भाईचारे के साथ देश को इक्कीसवीं सदी तक गौरवशाली अतीत के साथ लेकर आए हैं।

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हमारा भारत अनेक विविधताओं से परिपूर्ण है फिर भी इसकी अमर आत्मा एक ही है वह है भारत राष्ट्र। इसलिए इसे अनेकता मे एकता का देश भारत कहा जाता है। यहां पूरे विश्व को एक कुटूंब की निगाह से देखी जाती है। वसूधैव कुटुंबकम् हमारा राष्ट्रीय पहचान एवं संदेश हैं।

भारत की आत्मा गांवों मे बसती है ऐसी हमारी मान्यता है चुंकि भारत गांवों का देश है। यहां प्राचीन काल से ग्राम्य व्यवस्था समृद्ध एवं गौरवशाली रही है। प्राचीन धर्म ग्रंथों मे भी ग्राम्य संस्कृति का समृद्ध विरासत भरा हुआ है। भगवान राम, कृष्ण का जीवन तो वन्य ग्रामों की मूल्यों, मान्यताओं, संस्कृति और सभ्यता से परिपूर्ण है।

उनके आदर्श चरित्र गुरुकुल शिक्षा की नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों आधुनिक समाज को सदैव प्रेरित कर रही है। भगवान राम का आदर्श राज व्यवस्था वर्तमान परिदृश्य के लिए बहुत प्रासंगिक है। उनके राजकाल मे जनता सभी तरह से सुखी थे। रामचरित मानस मे गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते है —

बयरु न कर काहू सन कोई,
रामप्रताप विषमता खोई।।
नहिं दरिद्र कोऊ दुखी न दीना,
नहि कोई अबुध न लच्छन हीना।।
उनके राज्य मे किसी का किसी शत्रुता नहीं थी,दुखी जन नहीं थे,न कोई अशिक्षित थे। इसीलिए कहते हैं रामराज्य मे शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते थे।

आधुनिक भारत का ग्राम स्वराज महात्मा गांधी के सपनों का भारत है। उन्होंने रामराज्य से प्रेरणा लेकर ग्राम स्वराज की परिकल्पना की। गांधी जी ने वैश्विक रामराज्य की परिकल्पना की जो आधुनिक वैश्विक समाज के लिए अत्यंत आवश्यक है।

वर्तमान युग वर्ग संघर्ष का पूंजीवादी व्यवस्था की ओर तीव्रता से अग्रसर है ऐसी स्थिति मे समाज के ग्रामीण,निर्धन,दबले कुचले दुषित राजनीतिक व्यवस्था मे कहीं दिखाई नहीं देते। उनके लिए रोजगार, शिक्षा, न्याय सहज सरल रूप मे उपलब्ध हो पाया अत्यंत कठिन हो रहा है।तब गांधी ग्राम स्वराज की अवधारणा को फलीभूत होने की सपना संजोए।

उनके अनुसार ग्रामीण भारत आत्मनिर्भर एवं प्रजातांत्रिक हों। जहां शासन व्यवस्था विकेंद्रीकृत हो और शक्ति गांव मे निहित हों। ग्राम पंचायत के विधायी, कार्यकारी और न्यायिक शक्ति भी हों। वर्तमान परिदृश्य मे ग्रामीण स्तर के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराने मे शासन स्तर पर विविध प्रकिया के कारण बहुत समय लग जाता है जिसके कारण ग्रामीण जनता को बहुत शारीरिक, मानसिक, आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है।

गांधी जी ने सबसे निचले स्तर पर स्वशासन की पक्षधर रहे हैं जहां गांव अपना नियम और प्राथमिकताएं स्वयं बनाए। ग्राम स्वराज से शोषण मुक्त समाज, आत्मनिर्भरता,शासन व्यवस्था का निचले स्तर तक विकेंद्रीकरण, और सशक्त समाज का निर्माण करने सहायक होगी।

ग्राम स्वराज की स्थापना मे गांधी जी की बुनियादी शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है जिसे नई तालीम कहा गया है। बुनियादी शिक्षा ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने बहुत कारगर हुए।

बुनियादी शिक्षा के तहत गांधी जी ने शिक्षा के साथ काम, शारीरिक श्रम, ज्ञान और व्यवसायिक शिक्षा को अधिक महत्व देते हुए कुटीर उद्योगों के विकास पर जोर दिया। गांव के हस्तशिल्प जैसे – लकड़ी एवं बांस के सामान बनाना, मृदा शिल्प, कपड़े बुनाई, पशुपालन से पशु के प्राकृतिक उत्पाद जैसे -दुध,दही मक्खन घी,ऊन,कृषि उत्पादन के लिए तिलहन से तेल पेराई एवं तेलघानी की स्थापना आदि से गांव मे परंपरागत प्राचीन ग्राम्य अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने जा पर जोर दिया।

इससे समाज मे बढ़ई, लोहार, तेली बुनकर,सोनार,आदि कुशल कामगारों का समाज मे महत्त्व मे वृद्धि होगी। गांधी जी का मानना था कि सीखने का मुख्य आधार सार्वभौमिक साक्षरता है। ग्रामीण समाज के लोग जब एक स्थान पर रहकर कौशल विकास सीखेंगे तो आपसी प्रेम सहयोग भाई चारे का विकास होगा और सामाजिक समरसता मे वृद्धि होगी। यदि गांव की समरसता और समृद्धि नष्ट होगी तो भारत नष्ट हो जाएगा ‌

ग्राम स्वराज की संकल्पना को मजबूती प्रदान करने मे सर्वोदय आंदोलन की प्रभावी भूमिका रही जो ग्राम स्वराज का प्रतीक था।इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य समाज मे सबकी उन्नति एवं सार्वभौमिक उत्थान,वर्ग विहीन, राज्य विहीन, शोषण मुक्त समाज की परिकल्पना रही है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सर्वांगीण विकास करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए इससे प्रति व्यक्ति आय और विकास ही राष्ट्रीय आय और विकास का द्योतक है।

महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज एवं सर्वोदय आंदोलन से प्रेरित होकर विनोबा भावे जी देशभर मे भूदान आंदोलन चलाया।
जमींदारों से अपील की गई कि समाज के भूमिहीन गरीबों को स्वैच्छिक भूमिदान करें। दान की गई भूमि पर भूमिहीन गरीब परिश्रम कर फसल उत्पादन करेंगे इससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी और राष्ट्रीय कृषि उत्पादन मे वृद्धि होगी।

जब गरीब परिश्रम से अन्न उत्पादन करेंगे तो उनके आत्मसम्मान और आत्मविश्वास दृढ़ होगा भूमि की अनुपातहीन वितरण से सामुदायिक सशक्तिकरण को मजबूती मिलेगी। भूदान को ग्राम स्वराज समुदाय को सशक्तिकरण के उपकरण के रूप देखा गया और बहुत बड़ी संख्या देश के जमींदारों ने भूमिदान कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की वृद्धि को पंख दिया। इस भूदान आंदोलन को रक्तहीन क्रांति कहा गया।

महात्मा गांधी जी का ग्रामीण न्याय व्यवस्था पर अटुट विश्वास था। चुंकि भारत प्राचीन काल से वसुधैव कुटुंबकम् , सशक्त,आदर्श, निरपेक्ष न्यायप्रणाली वाली शासन व्यवस्था का प्रतीक है जिसकी अनुपम उदाहरण गांवों मे देखी जाती थी। इसलिए गांधी जी ग्राम न्यायालय के समर्थक रहें हैं। सदियों से अनेक प्रेरक न्याय दृष्टांत इस भूमि पर देखी जा सकती है।

विशेष कर सनातन शासन व्यवस्था मे जब गांव के लोग ही अपने दोष सिद्धि और दोषमुक्ति के लिए गांव के समाज मे न्याय की मांग करते थे। गांव के विवेकशील बुद्धिमान लोग पक्षद्वय को सुनकर निष्पक्ष न्याय देते थे जिसे सहज रूप मे स्वीकार कर लिया जाता था तब गांव मे सामाजिक संघर्ष, षडयंत्र, वैयक्तिक और सामाजिक बुराईयां लगभग नहीं के बराबर थे। इस सर्व स्वीकार्यता ग्राम सशक्तिकरण का मुख्य आधार था।

वर्तमान परिवेश मे न्याय व्यवस्था बहुत जटिल, व्ययशील और विलंबक हो गया है। देर से न्याय अर्थात अन्याय की अवधारणा को पुष्ट करता हैं। ऐसे मे ग्राम स्वराज और ग्राम न्यायालय की महती आवश्यकता है।

हमारे देश मे इसी परिप्रेक्ष्य मे ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 अधिनियमित की गई जो 2 अक्टूबर 2009 को लागू किया गया। इसका उद्देश्य न्यायिक व्यवस्था एवं न्याय को आम जनता के करीब लाना। लोगों को शीघ्र एवं सस्ती न्याय उपलब्ध कराना। लेकिन यह कुछ राज्यों तक सीमित रही।व्यापक रूप मे लागू नहीं किया जा सका।

ग्राम स्वराज की अवधारणा की सुदृढ़ीकरण के लिए 73 वां संविधान संशोधन 1993 मे पंचायती राज संस्थाओं को अधिक शक्ति और स्वायत्तता प्रदान की गई है। अब पहले अधिक अधिकार सम्पन्न पंचायत को बनाए गए हैं जहां पर शासन के अधिकांश योजनाएं ग्राम पंचायतों के माध्यम से लागू किए जा रहे हैं। किसी भी शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए ग्राम पंचायत के प्रस्ताव को अनिवार्य कर मंजूरी दी जा रही है।

इस तरह से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नायक महात्मा गांधी जी की ग्राम स्वराज की अवधारणा आज अति महत्वपूर्ण, प्रासंगिक, स्वीकार्य, हैं। स्वतंत्र राष्ट्र महात्मा गांधी के भारत की आत्मा गांव मे निहित है कि संकल्पना का कृतज्ञ हैं। उनके जन्मदिवस पर कोटि कोटि नमन।

छन्नूलाल साहू (शिक्षा विद- प्रधान पाठक)
शासकीय प्राथमिक शाला कुम्हली, विकास खंड पाटन जिला दुर्ग छत्तीसगढ़।

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