डॉ. बिजेन्द सिन्हा जी का संपादकीय लेख “शान्ति व सदभावना हमेशा कायम रहे स्वतंत्र भारत में “

डॉ. बिजेन्द सिन्हा जी का संपादकीय लेख “शान्ति व सदभावना हमेशा कायम रहे स्वतंत्र भारत में ”

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रानीतराई :- अपने राष्ट्र को स्वतंत्र हुए 76 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, लम्बे स्वाधीनता आन्दोलन के बाद अपना देश पराधीनता की बेडियो से मुक्त हो पाया था, आज हमारा देश चहुँमुखी विकास कर विश्व समुदाय में स्थान बनाया है, स्वतंत्रता का अर्थ नैतिकता की अवहेलना या फिर जीवन मूल्यों की अवमानना नहीं है,आजादी के बाद कई चीजें बदली हैं लेकिन कुछ समस्याएं आज भी वैसी है जैसे पहले थीं, आज पारिवारिक मूल्यों, सामाजिक ,आर्थिक व राजनैतिक प्रायः हर स्तर पर नैतिक गिरावट आई है ।
अगर हम लोकतंत्र पर विचार करें तो आजादी के इतने वर्ष बाद भी जातिवाद साम्प्रदायिकता राजनीति में वंशवाद व परिवारवाद जातिगत व धार्मिक ध्रुवीकरण तेजी से बढ रहे हैं जो लोकतंत्र की व्यवस्था को हानि पहुँचाते हैं, लोकतंत्र का आधार जनता का न होकर विचारधारा की उपेक्षा कर राजनैतिक गठजोड़ तक सीमित होता जा रहा है,आज भी विविध व विकट समस्याओं से लोग जूझ रहे हैं,कुपोषण,असुरक्षा,बेरोजगारी, शोषण,विषमता,हिंसा,अपराधीकरण व जाति धर्मं के नाम पर बंटा समाज गम्भीर समस्याएं हैं, जब आजादी मिली तो राष्ट्र विभाजन से आहत था था, आजादी के समय देश सिर्फ दो भागों में विभाजित हुआ था लेकिन आज धर्म जाति वर्ग सम्प्रदाय के आधार पर क ई टुकडो में विभक्त हो गया है जिससे सामाजिक सौहार्दरता में कमी आई है, लगता है कि हमारी राष्ट्रीय अस्तित्व व मानवीय गरिमा ही खतरे में न आ जाए,आज का भारतीय समाज जिस तरह टुकडो में बंट कर मूल्य हीन हो रहा है वह राष्ट्रीय व मानवीय जीवन की गरिमा को कम करता है, धर्म, जाति
भाषा,प्रान्त व सम्प्रदाय के आधार पर
जिस तरह की संकीर्णता का प्रदर्शन इन दिनों हो रहा है उससे देश व समाज के बिखरने का खतरा है, अलगाववाद व संविधान विरोधी तत्व भी इसी तरह की पृष्ठभूमि पर खडे होते हैं।
वर्तमान समय में जातिगत व धार्मिक ध्रुवीकरण तेजी से बढ रहे हैं, ध्रुवीकरण से समाज में वैमनस्य,विभेद-विभाजन की दुखद दीवारें खड़ी हो जाती हैं, संविधान की प्रस्तावना व्यक्ति व राष्ट्र की एकता व अखण्डता की गरिमा बनाए रखने के लिए लोगों के बीच भाईचारे को बढावा देते हैं लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण विभाजनकारी व फुट डालो और राज करो की नीति को पोषित करती है, धर्म व जाति आधारित राजनीति ने देश का काफी नुकसान किया जिसका परिणाम पूरे देश ने देखा ध्रुवीकरण का सीधा असर देश के सौहार्द पर पडता है, हमारे संविधान का निर्माण धर्म पंथ जाति लिङ्ग के आधार से नहीं हुआ है, संविधान के मूल में धर्म निरपेक्षता की अवधारणा है लेकिन लगता है कि राष्ट्रीय परिदृश्य में सास्कृतिक एकता व सामाजिक सौहार्द्रता में कमी आई है,अपने जैसे लोगों से मधुर संबंध बनाना व अपने से भिन्न मत वाले के प्रति विमुखता का भाव अनेकता में एकता विविधता के बीच समता मे बाधक है, इससे धर्म निरपेक्षता का ताना-बाना बिगड सकता है, यदि समाज धार्मिक आधार पर विभाजित रहा तो हमेशा क्लेश अशान्ति व कटुता जनमानस को विचलित करती रहेगी,धर्म के आधार पर किसी से भेदभाव न हो, आज सर्वाधिक आवश्यकता देश की धर्म निरपेक्ष पहचान को बनाए रखने की है, धर्म व मजहब के स्वर शान्ति में वृद्धि के लिए होना चाहिए,अपना यह देश विश्व शक्ति बनकर उभरा है, परन्तु कुछ विडम्बना भी है,आजादी के इतने वर्ष बाद भी देश के कुछ हिस्सों में आज भी जातिगत हिंसा देखने को मिलता है, कुछ घटनाओं ने देश को शर्म सार किया, ऐसी शर्मनाक घटनाएँ जब होती हैं तो हमारा सारा विकास बेमानी साबित होती हैं,जिस तरह से देश में साम्प्रदायिकता की आग सुलग रही है वह राष्ट्रीय एकता को प्रभावित करता है,यह विडम्बना ही है कि स्वतंत्र भारत में भी देश के कुछ हिस्सों में जनजीवन अशान्त और असुरक्षित दिखता है, समाज में आज भी अन्याय असन्तुलन असमानता व्याप्त है, जिससे समाज के बहुत बड़े वर्ग का शोषण व दमन होता है भले ही देखने में वह स्वाधीनता दिखाई देता है, वास्तव मेँ आजादी के साथ प्राप्त राजनैतिक स्वतंत्रता के बावजूद पूर्ण आजादी का सपना अभी भी शेष है, नैतिक आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र की आजादी के बिना सामाजिक बदलाव का उद्देश्य असम्भव है, इन सभी समस्याओं का समाधान समतामूलक समाज की रचना है, संविधान में उल्लेखित समानता के सिद्धांत में समतामूलक समाज की अवधारणा है जिसकी रचना अभी भी शेष है, समता के भाव को अपनाने से ही सामाजिक शान्ति आएगी, जातिगत भेदभाव को खत्म करने सामाजिक लोकतंत्र को मजबूत करने सामाजिक न्याय अपनाने व समता के भाव को समझने स्वीकारने व अपनाने की जरुरत है ।
नये भारत के निर्माण की चर्चा इन दिनों जोरो पर है परन्तु विकास का पैमाना सिर्फ साधनों व सुविधाओं की अधिकता से ही नहीं बल्कि संस्कारित व्यक्तित्व व बेहतर समाज के निर्माण से भी है,आजादी की लडाई में सभी जाति व धर्म के लोगों का योगदान रहा है।जाति व धर्म के नाम पर तनाव व भेदभाव देश हित में नहीं है, संविधान ने भी इस वर्ग भेदभाव को अस्वीकारा है, धर्म व मजहब को किसी राजनैतिक हित या शासन के समर्थन व विरोध के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये, संविधान सबको समान नजर से देखता है।
वर्ग जाति धर्म सम्प्रदाय के आधार पर भेदभाव, एक को सम्मान व दूसरे को घृणा की दृष्टि से देखना व घृणा करना वैचारिक ही मानवता की दृष्टि से भी उचित नहीं है,जात-पात के नाम पर बंटे अपने अगठित समाज को फिर से एकता और समता के सूत्र में बाँधने की आवश्यकता है, सभी धर्म के लोगों के बीच भाईचारा व सद्भावना बना रहे। आज जितनी भी भ्रान्तियाँ व समस्याऐ दिखती हैं उसके पीछे सिर्फ कट्टरता ही है, अपने से भिन्न मत को सहने की भावना विकसित न रही तो देश में हमेशा क्लेश अशान्ति व कटुता जनमानस को विचलित करती रहेगी, इन समस्याओं के समाधान के लिए धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाने की जरुरत है। समता एकता और मिलजुलकर रहने की अभिरुचि जितनी अधिक होगी समाज की समर्थता व सभ्यता उसी क्रम में बढती चली जाएगी, हम विचारों जाति पंथ को खुद के टुकड़े करने के लिए इस्तेमाल न करें संविधान की सुचारू व्यवस्था के लिए अनिवार्य ऐसी व्यवस्था हो जिसमें सब सहज और सुरक्षित महसूस करें, ऐसे शासन तंत्र विकसित हो जिसमें जाति वर्ग मत पंथ आदि विभाजक रेखाओं का कोई स्थान न हो सद्भाव हमारी संस्कृति का मूल है, गण तान्त्रिक परम्पराओं को बनाए रखने और समग्र व समावेशी भावना विकसित करने की जरुरत है ।सर्व धर्म समभाव से ही राष्ट्र विकास पथ पर अग्रसर हो सकता है, शान्ति व सद्भावना बनाए रखने के लिए सुयोग्य नागरिकों का निर्माण किया जाय समुचित शिक्षा व नैतिक शिक्षा से ही यह सम्भव हो सकता है, नैतिक शिक्षा से ही बेहतर समाज का निर्माण हो सकता है। शान्ति व सदभावना कायम रखने के लिए एकता समता संवेदनशीलता शुचिता व ममता आदि गुणों को अपनाने की जरुरत है,आशा है कि अपने भारत देश में शांति व सदभावना बनाए रखने के लिए देशभक्ति व राष्ट्र हित ध्यान में रखकर निरन्तर प्रयासरत रहें।

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करन साहू रिपोर्टर - पाटन "के गोठ (PKG NEWS) Powerd By "Chhattisgarh 24 News" Group Of multimedia Pvt. Ltd.
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